~*Random Musings of a Baffled Mind*~
Wednesday, May 11, 2011
उपहार
सोचा था उपहार में
लिख के तुमहे
एक कविता दूँ
पर तुम इतनी
सीमित तो नहीं
की तुमहे शब्दों में बाँध दूँ
सागर को मैं
क्यूँ नापूं
नभ को क्यूँ
छूना चाहूँ
अथाह स्नेह है तुम्हारा
जिसमें डूबा रहना चाहूँ !!!
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