Thursday, May 15, 2008

मैं हूँ


मैं हूँ तट की रेत मीत रे

तू नदिया की चंचल धारा

रहा समीप युगों से तेरे
फिर भी प्यासा हृदय हमारा

कितना मैं लाचार रहा हूँ

तुमको अब तक ना छू पाया

तू सूर्य की किरण सुनहरी

मैं संध्या की काली छाया

मैं हूँ तट की रेत मीत रे
तू नदिया की चंचल धारा


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